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लिखने और प्रयोग करने में क्या हर्ज है- व्यंग्य
पिछले कई वर्षों से मन में हिंदी का विख्यात लेखक बनने की इच्छा रही जो कभी पूर्ण नहीं हो सकी। विषय सामग्री की प्रशंसा तो अनेक लोगों से मिली पर ख्याति फिर भी नहीं मिली। भटकते हुए इस अंतर्जाल (अनुवाद वाला टूल इसे इंटरनेट नहीं करता) पर आ गये। वर्डप्रेस का ब्लाग लिखने बैठ गये तो अपने देव और कृतिदेव में टाईप कर रख दिया। दो दिन तक इस बात प्रतीक्षा की कि यह उसको हिंदी के कर देगा। उसने नहीं किया तो हम हैरान रह गये। आखिर दूसरे लोग किस तरह लिख रहे हैं यह सोचकर हैरानी होती थी। पता नहीं कैसे हमने वर्डप्रेस में हिंदी श्रेणी में अपना ब्लाग घुसेड दिया। इससे वहां सक्रिय अन्य ब्लाग लेखकों की उस पर वक्रदृष्टि पड़ गयी। हिंदी के सब ब्लाग एक जगह दिखाने वाले नारद फोरम के ब्लाग लेखक आखें तरेर रहे थे। ‘यह कौनसी भाषा है’, ‘इसे यूनिकोड में करो’, वगैरह….वगैरह।
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टिप्पणियाँ
साहित्यक लेखक से ब्लाग लेखक बनकर रह गये।
साहित्य – लेख का एक प्रकार है।
चिट्ठा – लेखन के लिए एक मंच है जिस पर साहित्य भी लिखा जा सकता है।
साहित्य लेखक से ब्लाग लेखक बनकर रह गए का क्या मतलब हुआ?
अगर प्रेमचन्द चिट्ठे में अपनी कहानी लिखते तो ब्लाग लेखक बनकर रह जाते?