देशी कुत्तों की तस्करी की खबर सुनकर आयी मुझे अपने कुत्ते की याद-आलेख


देशी कुतों की तस्करी भी हो सकती है कि यह कभी हमें सोचा भी नहीं था। आज टीवी में यह खबर सुनकर हम हैरान हो गए, पर खबर तो खबर है। बाकायदा नागालेंड भेजने के लिए उनको तैयार किया गया था। वहां उसके मांस से खाद्य सामग्री बनायी जाती है जिसे बडे शौक से खाया जाता है।

हमने सबके मांस खाने की खबर पढी है पर देशी कुत्तों का भी मांस खाया जाता है यह हमने पहली बार सुना है। कुत्ता बहुत वफादार जानवर है और जिसका खाता है उसकी बजाता है। आवारा कुत्ता भी हम जिसे कहते हैं वह किसी गली या मोहल्ले का पालतू होता है जो वहां के निवासियों द्वारा फैंकी गयी खाद्य सामग्री खाकर काम चलाता है।

हमारे आध्यात्म/दर्शन के अनुसार गृहस्वामिनी को घर के भोजन पकाते समय पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुते के लिए पकाना चाहिऐ। बृहद होते समाज में तमाम तरह के परिवर्तन आते गए और कुछ लोगों को याद रहा और कुछ को नहीं। गाय को तो पालतू बताया गया है कुत्ते को पालने का जिक्र नहीं किया गया पर उसका मनुष्य के साथ सह-अस्तित्त्व स्वीकार किया गया। उसकी जगह घर के बाहर मानी गयी और एक तरह से उसे सामूहिक रूप से पालतू पशु का दर्जा दिया गया है। गावों में कभी बच्चों के पत्थर खाते और कभी रोटी खाते यह देशी कुत्ते और कुछ करें या नहीं पर रात को उनकी आसपास उपस्थिति एक आत्मविश्वास जरूर देती है।

भारत में घर में निजी रूप से कुत्ते पालने का काम मुझे लगता है कि अंग्रेजों के समय में ही शुरू हुआ होगा। फिर शहरी सभ्यता में चूंकि पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव रहा है इसलिए बडे लोगों के साथ अब मध्यम वर्ग के लोग भी कुत्ते को पालने लगे हैं। हाँ इसमें भी लोगों ने देशी कुत्तो के नस्लों से अपने परहेज दिखाई है। खिलोना टाईप के पामोलियन के कुत्ते अधिक पाले जाते हैं। जब हम अपना मकान बना रहे थे तो हम जहाँ किराए पर रहते थे उसके मालिक देशी कुत्ते का बच्चा ले आये। उनकी माँ, पत्नी और बच्चों ने इसका विरोध किया। उस समय हम अपना मकान बनाने के लिए शुरू करने वाले थे तो उन्होने हमसे कहा-”यह कुत्ता आप रख लो। नये मकान में काम आएगा।”
मकान मालिक की बात का हमने प्रतिवाद किया पर हमारी श्रीमतीजी ने उसे स्वीकार कर लिया। हमें डेढ़ वर्ष मकान बनाने में लगा और फिर उसे अपने साथ ले आये। दस वर्ष तक हमारे साथ वह रहा और पिछले वर्ष उसका निधन हो गया। बिलकुल बच्चों की तरह रहा और उसकी मौत पर हमें बहुत दुख हुआ और खुशी भी क्योंकि उसका अंत हमसे देखा नहीं जा रहा था। बहरहाल देशी कुत्तों को कई लोग विदेशी कुत्तों के मुकाबले श्रेष्ठ मानते हैं और अपने स्वर्गीय कुत्ते के प्रति मेरे मन में इतना सम्मान है कि मैं उनकी नस्ल पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करता।
पहले देशी कुत्तों को भोजन-पानी वगैरह बहुत आसानी से मिल जाता था पर बदलते परिवेश ने उनको भी प्रभावित किया है अब वह एक गली-मोहल्ले से दूसरे में अपना भोजन पानी उनको ढूढने जाना पड़ता है। हमारे देश में देशी आवारा कुत्तों की बहुत बड़ी संख्या में है और इस तरह उनके मांस की तस्करी की संख्या बड़ी तो हो सकता है कि एक दिन इसकी नस्ल बचाने के लिए सोचने लगें। हमेशा साथ रहने वाले इन देशी कुत्तों को वही आदमी देखते हैं जो सभी जीवों के प्रति एक जैसा दृष्टिकोण एक जैसा है। मैं अपने कुत्ते की याद करता हूँ तो लगता है कि शुरूआती दिनों में मेरा ध्यान उस पर नहीं जाता था पर वह मुझे हर पल देखता था। शाम को जब मैं घर लौटता था तो वह भले ही पामोलियन की तरह लहराता हुआ नहीं आता था पर उसकी आखों के भाव बताते थे कि वह कुछ सोच रहा है। आदमी अपने देहाभिमान में किसी तरफ नहीं देखता पर अन्य जीव उसे देखते हैं, इसकी अनुभूति अपने उसी पालतू कुत्ते से हुई। इंसान को इस धरती पर केवल अपना अस्तित्व ध्यान में रखता है जबकि अन्य जीव अपनी जीविका के लिए उस पर निर्भर हैं और उसकी जीविका का आधार भी हैं। इस मामले में भारतीय दर्शन में सबसे अग्रणी है कि उसमें जीव और जीवात्मा की प्रधानता है न कि केवल मनुष्य देह की।

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