ओलंपिक में भारत की हॉकी टीम नहीं होगी। टीम ओलंपिक जाती थी तो कौनसे तीर मारती थी कहने वाले तो कह सकते हैं। ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा महाकुंभ है और उसमें भारत की पहचान केवल हॉकी से ही है और किसी खेल में भारत का नाम इतना नहीं है। जब ओलंपिक में सारे खिलाड़ी हार कर वापस लौटते हैं पर हॉकी टीम आखिर तक खेलती है और समापन कार्यक्रम में उसके खिलाड़ी भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। अब कौन बचेगा। यह भूमिका निभाने के लिए? तय बात है इसके लिए अब विचार होगा।
हमारी स्थिति अच्छी नहीं है यह सब जानते थे। चक डे इंडिया फिल्म महिला हॉकी पर बनी जिसमें भारत को काल्पनिक विजेता बना दिया। लोग फूले नहीं समाये। जिधर देखो चक दे इंडिया का गाना बज रहा था। ट्वंटी-ट्वंटी क्रिकेट विश्व कप में जब भारत जीता तो सारे अख़बार और टीवी चैनल इसे बजा रहे थे। मगर जिस हॉकी की पृष्ठ भूमि पर यह काल्पनिक कथानक गढा गया वह खेल सिसक रहा था। मैंने उस समय एक ब्लोग पर इस फिल्म के कथानक की तारीफ पढी तो मुझे हँसी आयी और मैंने उस पर खूब लिखा। जिस क्रिकेट खेल पर इस देश के प्रचार माध्यम कमा रहे है उसमें विश्व कप में बंगलादेश से हारा था यह भूलने वाली बात नहीं है। यह इतिहास में दर्ज रहेगा कि २००७ में भारत की क्रिकेट टीम अपमानित रूप से हार कर विश्वकप क्रिकेट से बाहर हुआ और इसे कोई बदल नहीं सकता।
मजे की बात यह है कि हॉकी की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म में हीरो की भूमिका निभाने वाला हीरो आज क्रिकेट के बाजार में प्रवेश कर गया है और हॉकी कान तो नाम भी उसकी जुबान पर नहीं था। आखिर सवाल यह है कि चक दे इंडिया को हॉकी की पृष्ठभूमि पर क्यों बनाया गया क्रिकेट की क्यों नहीं? मेरा अनुमान है कि भारत के लोग क्रिकेट देखते हैं पर हॉकी को चूंकि राष्ट्रीय खेल के रूप में प्रचारित किया जाता है इसलिए लोगों का उससे आत्मिक लगाव है और इसी कारण उनकी भावनाओं का दोहन करना आसान है।फिल्म बनाना एक व्यवसाय है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है पर हमारे देश के लोग बहकावे में आ जाते हैं तब उस पर विचार तो करना ही होता है। बहुत दिन तक गूंजा चके दे इंडिया का नारा पर अब क्या?
हॉकी से पूरे विश्व में हमारी पहचान थी। अब चीन में होने वाले ओलंपिक में भारत हॉकी नहीं खेल सकेगा। इस समय मुझे कोई ऐसा कोई खिलाड़ी दिखाई भी नहीं देता जिसके वहाँ कोई ओलंपिक में पदक पा सकेगा। टेनिस के कुछ नाम चर्चित हैं पर उनकी विश्व में रेकिंग भी देख लेना जरूरी है। हाँ एक जो मजेदार बात मुझे लगती है और हंसी भी आती है कि भारत में एशियाड, कॉमनवेल्थ और ओलंपिक में कराने के प्रयास किये जाते हैं तो किस बूते पर?केवल पैसे के दम पर न! फिर हाकी पर पैसा खर्च क्यों नहीं करते? हम खेलों के मेले लगाने की बात करते हैं तो पर खिलाडियों को प्रोत्साहन देने के नाम पर सांप सूंघ जाता है।
क्रिकेट हो या टेनिस बहुत लोकप्रिय हैं पर हाकी भारत के खेलों का प्रतीक और आत्मा है। यह ठीक है कि वहाँ बहुत समय से कोई पदक नहीं जीता पर फिर भी एक संतोष था कि चलो अपना प्रतीक बना हुआ है। अब वहाँ से बाहर होने पर जो वास्तव में खेल प्रेमी हैं वह बहुत आहत हुए हैं और जो केवल आकर्षण के भाव से देखने वाले दर्शक हैं उनको इसका अहसास भी नहीं हो सकता कि भारत ने क्या खोया है? हॉकी हमारे आत्सम्मान का प्रतीक है जो हमने खो दिया है।
हम अपने आर्थिक विकास और सामरिक मजबूती का दावा कितना भी कर लें पर हमारे पडोसी देश चीन की जनता को अगले ओलंपिक में इस पर हंसने का खूब अवसर मिलेगा। आखिरी बात खेलों के किसी भी राष्ट्र के विकास का प्रमाण माना जाता है और जो ऐसे विकास के दावे करते हैं उन्हें हॉकी में भारत की हार एक आईने की तरह दिखाई जा सकती है। हॉकी खेल में विश्व के मानचित्र में बने रहना ही हमारे लिए ताज था और अब चाहे कितना भी कर लो अब वह आसानी से वापस आने वाला नहीं है अगर ऐसा करने वाले लोग होते तो इतने साल से गर्त में जा रहे इस खेल को बचाने की कोशिश नहीं करते।