अगले ओलंपिक में भारत की हाकी टीम नहीं खेलेगी। देश के नये खेल प्रेमियों को शायद ही इससे मतलब हो पर फिर भी पुराने खेल प्रेमियों को लिए यह खबर सदमें से कम नहीं है। इस देश के अधिकतर खेल प्रेमियों को क्रिकेट पसंद हैं पर सभी को नहीं वरना हाकी खेलने के लिए नये लड़के कहाँ से आते हैं? स्पष्टत: कुछ जगह अभी भी यह खेल खेलने वाले लड़के हैं और खासतौर से पंजाब में अभी भी यह लोकप्रिय है-हालंकि देश के अनेक भागों में लड़के आज भी हाकी खेलते हैं और उनकी संख्या इतनी है कि अगर सावधानी, ईमानदारी और कुशलता से प्रशिक्षण और चयन हो तो अभी भी हमारी विश्व में बादशाहत कायम हो सकती हैं।
क्रिकेट की लोकप्रियता को हॉकी के विकास में बाधा मानना बेकार का तर्क है। आस्ट्रेलिया, इंग्लेंड और दक्षिण अफ्रीका की हॉकी टीमें अच्छा खेलतीं है और क्रिकेट में भी उनकी बादशाहत है। एक श्रंखला में आस्ट्रेलिया पर जीत क्या हुई हमारे देश के प्रचार माध्यम सीना फुलाने लगे थे और अब हॉकी की दुर्दशा पर एक दिन रोकर सब बैठ जायेंगे। हाकी को राष्ट्रीय खेल (इसके लिए कोइ आधिकारिक दस्तावेज है इसकी जानकारी मेरे पास नहीं है) भी कहा जाता है और इसी खेल में हमारा अस्तित्व ही ख़त्म हो गया। अभी तक अनेक लड़के ओलंपिक और विश्व कप में जाने का ख्वाब यह सोचकर पालते थे कि क्रिकेट में सबको जगह तो मिल नहीं सकती तो क्यों न इसमें हाथ आजमाया जाये। कई नये लड़के राष्ट्रीय खेल में इसलिए भी आते हैं कि हो सकता है अच्छा खेलने पर कैरियर बन जाये। उनके लिए यह खबर बहुत दुखद: है।
जिस तरह हाकी में सब चल रहा है उससे तो नहीं लग रहा है कि अब इसमें इतनी आसानी से वापसी होगी। क्रिकेट जिसमें इतना पैसा है उसमें अभी भी वापसी कहाँ हुई है? एक दिवसीय मैचों में जब विश्व कप के दूसरे दौर में टीम पहुंचे तब कहना कि हाँ टीम में दम है। इक्का-दुक्का एक दिवसीय श्रंखला तो टीम जीत जाती है पर विश्व में हार कर बाहर आ जाती है। बात हाकी की हो रही है। इसमें हालत बहुत खराब है सबको मालुम था पर एकदम इसका अस्तित्व ही खतरे में आ जायेगा ऐसा सोचा नहीं था।
मैं थोडा कभी दार्शनिक भी हो जाता हूँ और इधर-उधर की बात भी कर ही जाता हूँ। हमारे देश में आजकल लोग कहते हैं कि सारे काम पैसे से होते हैं तो यहाँ बता दें अपने देश में ओलंपिक, एशियाड, और कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन कराने के लिए बहुत उत्साह जताया जाता है और वह बिना पैसे के नहीं होते और इसका मतलब तो यह है कि हमारे देश में पैसा तो है फिर हमारे खिलाडी बाकी खेलों में फिसड्डी क्यों है? मतलब पैसे से सब काम नहीं होते। सच तो क्रिकेट के विश्व कप में भारत की टीम की हार पर मुझे कोई अफ़सोस नहीं हुआ था क्योंकि मुझे पहले ही लग रहा था कि वह एक असंतुलित टीम है। हॉकी को कम देखता हूँ पर उसमें मेरी बहुत दिलचस्पी है और इस हर से मुझे वाकई दुख पहुंचा। सिवाय दुआ करने के अलावा क्या किया जा सकता है कि हाकी का खेल फिर वापस लोकप्रिय हो।
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