अप्रवासी और प्रवासी हिन्दी लेखक-आलेख


अप्रवासी ब्लोगरों को लेकर मेरे मन में बहुत जिज्ञासा रहती है क्योंकि उनके लिखे पर उस देश के परिवेश और संस्कृति की जानकारी मिल जाती है जो अन्य कहीं नहीं मिल पाती. हांलांकि समाचार पत्र-पत्रिकाओं में इस बारे में अक्सर छपता है पर वह अधिकतर सारे देश को इकाई मानकर लिखा जाता है और जो लिखते हैं वह अधिकतर विदेशी फोबिया से ग्रसित होते हैं. वहाँ रह रहे लोगों की मानसिक उतार-चढाव पर उनका नजरिया अधिक नहीं रहता है. हिन्दी के अप्रवासी भारतीयों से ही विदेशों में रह रहे अपने लोगों की बहुत अच्छी जानकारी मिल जाती है. इस बारे में ब्लोग तथा ई-पत्रिकाओं में सक्रिय लेखकों की रचनाओं से मैंने बहुत कुछ सीखा है.

शुरुआत में ई-पत्रिकाओं में मैंने कुछ कहानियां देखीं तो मुझे आश्चर्य हुआ यह देखकर कि अगर कुछ अच्छे लोग अपने साथ अच्छी बातें ले गए हैं तो कुछ बुरे भी हैं जो बुरी बातें ले गए हैं और यह भी कि सभी विदेशों में रह रहे लोग भले नहीं है. उनमें अपने देश के लोगों के साथ धोखा देने के प्रुवृतियाँ वैसी हैं जैसे यहाँ. कुछ कहानियां तो आँखें खोल देने वाली भी होतीं हैं. ब्लोग जगत में सक्रिय अप्रवासी भारतीयों के लिए ब्लोग अपने लोगों से भावनात्मक रूप से जुडे रहने का साधन भी है यह मैं मानता हूँ. चौपालों पर ब्लोगर भीड़ की तरह हैं और भीड़ में कौन क्या है यह समझ पाना मुश्किल होता है पर एक लेखक का काम यही है कि वह भी में न केवल अपनी पहचान बनाए बल्कि उसमें अपने लिए विषय के साथ अपने मित्र और साथी सही ढंग से तलाशने के साथ उसमें हर व्यक्ति को अलग-अलग कर पहचानने का प्रयास करे. अप्रवासी भारतीयों का लेखन के विषय भी हम प्रवासी भारतीयों की तरह हैं पर उनमें एक पृथक भाव अवश्य होता है और वह अपनी जन्मभूमि और लोगों से दूर रहने का भाव.
हम प्रवासी ब्लोगर यहाँ बैठकर जिन कठिनाईयों में-जैसी लाईट, यातायात, अपने कार्य और अपने सामाजिक तनाव- लिखते हैं वह अप्रवासियों को नहीं छूते पर उनके सामने और समस्याएं तो रहतीं हैं. उनके कार्यस्थल निवास स्थान से बहुत दूर होते हैं और सबसे बड़ी चीज जो मेरी नजर में आई हैं अपने देश के लोगों से उपेक्षा का भाव उन्हें वहाँ भी सालता है. एक जो सबसे अच्छी बात यह लगती है कि वह रुचिकर लिखने का प्रयास वह लोग करते हैं और नई जानकारियाँ भी उनसे मिलती हैं. शायद मेरे जैसे प्रवासी भारतीय ब्लोगर सोच रहे होंगे कि आखिर यह मैं सब कुछ लिख क्यों रहा हूँ? इसका जवाब यह है कि हम सब अपने देश के बारे में बहुत कुछ लिखते हैं पर रहन-सहन की हालातों को देखने तो सभी जगह कमोबेश एक जैसे हैं और इसलिए सतत पढ़ते रहने के बाद जब कुछ नया पढ़ने की इच्छा होती है तो इन्हीं अप्रवासी भारतीयों का लिखा मददगार होता है. ईपत्रिकाओं में मैंने कुछ ऐसी कहानियां भी पढी हैं जिनसे पता लगता है कि सब कुछ वैसा विदेशों में नहीं है जैसा यहाँ प्रचारित किया जाता है.
अप्रवासी ब्लोगर आमतौर से फोरमों पर चल रहे विवादों से दूर रहते हैं क्योंकि इससे उन्हें अपने सहृदय ब्लोगरों से दूरी होने की आशंका रहती हैं. इसके विपरीत हम प्रवासी इस खतरे से डरते नहीं क्योंकि यहाँ एक नहीं तो दूसरा मित्र बहुत सहजता से मिल जायेगा-शहर-प्रदेश, जाति, भाषा, कार्य की प्रकृति, विचारधारा और अन्य आधारों पर हमारे पास संपर्क बनाने के बहुत आधार हैं जिन पर देश में रहते हुए हमें कभी परेशानी नहीं आती और कुछ नहीं तो जिससे विवाद किया उससे समझौता करने में भी आसानी होती है. एक बात आपने देखी होगी कि समाज में विदेशों में नौकरी पाने और जाने का बहुत आकर्षण है पर प्रवासी ब्लोगर कभी इसके लिए ऐसा लालायित नहीं दिखाई देते क्योंकि इन्हीं अप्रवासी ब्लोगरों की पोस्टों से उन्होने वहाँ के हाल समझ लिए हैं. इसलिए अनेक पोस्टों पर ऐसी टिप्पणियाँ दिखाईं देतीं है कि’हम तो सोचते थे कि यहीं होता है वहाँ भी ऐसा होता है जानकार आश्चर्य होता है’.

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टिप्पणियाँ

  • समीर लाल  On 24/02/2008 at 03:44

    अप्रवासी लेखकों पर आपका शोध और निष्कर्ष काबिले तारीफ है.

  • Jolly Uncle  On 16/11/2009 at 13:26

    Dear Sir,

    I am writing hindi motivational articles, stories and jokes etc. for the last several years. More than 300 nos. such articles has already been published in India’s leading newspapers. I would request you to please add my name in the said list of Hindi Lekhak. I have also written 2 nos. hindi Joke Books which are very popular among readers.

    Thanks & Regards

    Jolly Uncle

  • GURDARSHAN SINGH  On 03/05/2010 at 18:50

    hi.I AM GURDARSHAN SINGH I HAD WROTE SO MANY ARTICLES IN HINDI ON SPIRTULISM AND SOCIAL ISSUES BUT I WANT MY ARTICLE BE PUBLISHED IN ANY LEADING NEWSPAPER OR MAGZINE I ‘LL HIGHLY THANKFULL TO THOSE WHO HELP IN THIS REGARD

  • GURDARSHAN SINGH  On 04/05/2010 at 19:41

    dear sir i am still waiting for your repply with regards
    gurdarshan singh

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