गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि
कूपहु ते कहुं होत है, मन काहु को बाढि
कविवर रहीम कहते हैं की जिस प्रकार रस्सी के द्वारा कुएँ से पानी निकल लेते हैं, उसी प्रकार अच्छे गुणों द्वारा दूसरों के ह्रदय में अपने लिए प्रेम उत्पन्न कर सकते हैं, क्योंकि किसी का हृदय कुएँ से गहरा नहीं होता।
कविवर रहीम कहते हैं की अपना प्रभाव और सम्मान सबको अच्छा लगता है। अपने शरीर की सुन्दरता आती है तो जाती भी है। जैसे ह्रदय पर पयोधर सुन्दर प्रतीत होते हैं परन्तु अन्यत्र रसौली भी होती है जो अच्छी नहीं लगती।
भावार्थ- मनुष्य में गुण और अवगुण दोनों ही होते हैं और समय पर उनका प्रकट होना आवश्यक भी है। अपना सम्मान अच्छा लगता है पर कभी अपमान का भी सामना करना पड़ता है। देह और मुख पर सुन्दरता होती है तो अच्छी लगती है पर अगर शरीर के किसी हिस्से पर रसौली है तो बहुत बुरी लगती है। ऐसे में हमें दुख-सुख में कभी विचलित नहीं होना चाहिऐ।
बसन्त पंचमी की समस्त साथियों, पाठकों और मित्रों को बधाई
दीपक भारतदीप
टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर, आपको भी बंसत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|