रहीम के दोहे:सज्जन सौ बार रूठे तो भी मनाएं


जैसी जाकी बुद्धि है, तैसे कहैं बनाय
ताकौं बुरो न मानी, लें कहाँ सो जाय

कविवर रहीम जी कहते हैं कि जिस मनुष्य की जैसी बुद्धि है वह उसके अनुरूप ही तो काम करता है। उस मनुष्य का बुरा मत मानिए क्योंकि वह और बुद्धि कहाँ लेने जायेगा।

टूटे सुजन मनाइये, जौ टूटे सौ बार
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार
कविवर रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार सच्चे मोतियों का हार टूट जाने पर बार-बार पिरोया जाता है, उसी प्रकार यदि सज्जन सौ बार भी नाराज हो जाएं तो भी उन्हें सौ बार ही मना लेना चाहिऐ क्योंकि वह मोतियों की तरह मूल्यवान होते हैं।

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टिप्पणियाँ

  • glowfriend  On 08/02/2008 at 10:45

    सौ फीसदी सही।
    पर आज के जमाने मे तो लोग उल्टा ही करते है।

  • mamta  On 08/02/2008 at 10:47

    सही कहा आपने।

  • mehhekk  On 08/02/2008 at 15:11

    oh yes 100 percent true said.bahut achha vichar raha ye.

  • Rewa Smriti  On 14/02/2008 at 16:36

    Mujhe Rahimji ke dohe kafi achhi lagti hai. khash kar yeh wala….

    Rahiman nij mann ki vyatha, man hi rakho goye….
    Soon athilehiye log sab, baant na lehe koye….

    rgds

  • Chhotu kumar  On 19/05/2013 at 18:14

    G

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