माया मया सब कहैं, माया लखै न कोय
जो मन में ना उतरे, माया कहिए सोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि माया-माया कहकर उसके पीछे तो सब पड़े हैं पर उसका सही स्वरूप कोई नहीं जानता. सभी एक दूसरे को सन्देश देते हैं कि माया के चक्कर में मत पडो पर पर सभी उसके इर्द-गिर्द जिन्दगी भर घूमते हैं.
भावार्थ-आपने देखा होगा कि सब लोग एक दूसरे को तमाम तरह के उपदेश देते हैं कि पैसे से सब कुछ नहीं होता है और धर्म-कर्म भी करना चाहिए और दिखाने के लिए भक्ति भी करते हैं पर उनके मन से माया का मोह नहीं निकलता और भगवान् का नाम लेते हैं पर उनको मन में स्थान नहीं दे पाते.