हिन्दी का परचम फहराने का
उनका तो बहाना है
बस उनको अपनी दुकान ज़माना है
बोलने में शब्द तो बह जाते
पर लिखते हुए हाथ काँप जाते
पर अपने लेखक होने का अहसास कराना
कहीं अखबारों से कटिंग ढूंढ कर लाते
कही उठा लाते किसी का छपा अफ़साना
जब कहीं हिन्दी के नाम पर
बनते पुरस्कार तो मुहँ में लार आ जाती
जब मिलते नहीं देखते तो
निर्णायक की कुर्सी पर बुरी नजर जाती
कहीं न कहीं तो ढूंढना है उनको ठिकाना
लोगों को किसी तरह होता है भरमाना
अखबार और पत्रिकाओं से
चलकर अंतर्जाल पा भी लाये वह जमाना
दुनिया भर के वाद और नारे
उनके भी खून में हैं
चाहते हैं किसी तरह उसे छिपाना
हिन्दी को अंतर्जाल पर बढ़ाने के नाम पर
सर्वश्रेष्ट ब्लोगर के लिए
चुन लेंगे अपने-अपने लोग
पुरस्कार वजनदार लगे इसलिए
हिट ब्लोगरों को भी होगा जरूरी फ्लॉप दिखाना
कहैं दीपक बापू
अंतर्जाल पर लिखने वाले ब्लोगरों में भी
भेड़ की खाल में भेडिया
न हो यह कैसे हो सकता है
छल-कपट के लिए
गढ़ लेते हैं तर्कों का बहाना
सो डरना या विचलित नहीं होना
बंटवाने दो अपनों-अपनों को पुरस्कार
अपना मन मैला मत करो
हमें तो हिन्दी का है परचम फहराना
जिन्होंने छेडा है हमारे ब्लॉग का डंडा
उनके ब्लॉग तो वैसे ही हैं अंडा
हमें तो चलते जाना है
माँ सरस्वती ने सौंपा है
शब्दों का खजाना
उसे अपने दोस्तों पर बरसाते जायेंगे
उनकी करनी पर ही
अब हास्य कविता लिखते जायेंगे
उन्हें पुरस्कार मिलते रहेंगे
हमें मिलेगा हास्य कविता लिखने का बहाना
नोट-यह काल्पनिक हास्य रचना है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका लेना-देना नहीं है अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाए तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा.
टिप्पणियाँ
बहुत बढिया व्यंग्य है।बधाई।
अपना मन मैला मत करो
हमें तो हिन्दी का है परचम फहराना
जिन्होंने छेडा है हमारे ब्लॉग का डंडा
उनके ब्लॉग तो वैसे ही हैं अंडा
सुंदर अभिव्यक्ति और सुंदर हैं भाव
शब्दों का जमावडा भी सुंदर
वो भी मूंछ पर देकर ताव
तेज ब्लॉगर की कविता आई
पढो और खाओ बड़ा-पाव