दुनिया से ऊबकर लोग
धर्म के रास्ते जाते
ढूंढते ठिकाने वही
जहाँ तख्तियाँ लगी होती
सर्वशक्तिमान के नाम की
पीछे अधर्म के होते अहाते
अपने अन्दर बैठे शख्स को देख पाते
तो शायद जान पाते
जिन्दगी केवल पाते रहने का नाम नहीं
जिस पर अपने जीवन के सभी पल लुटाते
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शांति लाने का दावा
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बारूद के ढेर चारों और लगाकर
हर समस्या के इलाज के लिए
नये-नयी चीजें बनाकर
आदमी में लालच का भूत जगाकर
वह करते हैं दुनिया में शांति लाने का दावा
बंद कमरों में मिलते अपने देश की
कुर्सियों पर सजे बुत
चर्चाओं के दौर चलते
प्रस्ताव पारित होते बहुत
पर जंग का कारवाँ भी
चल रहा है फिर भी हर जगह
होती कुछ और
बताते और कुछ वजह
जब सब चीज बिकाऊ है
तो कैसे मिल सकता है
कहीं से मुफ्त में शांति का वादा
बहाने तो बहुत मिल जाते हैं
पर कुछ लोग का व्यवसाय ही है
देना अशांति को बढावा
एक दुकान से खरीदेंगे शांति
दूसरा अपनी बेचने के लिए
जोर-जोर से चिल्लाएगा
फैलेगी फिर अशांति
जब फूल अब मुफ्त नहीं मिलते
तो बंदूक और गोली कैसे
उनके हाथ आते हैं
जहाँ से चूहा भी नहीं निकल सकता आजादी से
वहाँ कोहराम मचाकर
वह कैसे निकल जाते हैं
विकास के लिए बहता दौलत का दरिया
कुछ बूँदें वहाँ भी पहुंचा देता है
जहाँ कहीं शांति का ठेकेदार
कुछ समेट लेता है
जानते सब हैं पर
दुनिया को देते हैं भुलावा
न दें तो कैसे करेंगे शांति लाने का दावा
टिप्पणियाँ
दीपक भाई बड़ी खरी कविता है। सच कहा आपने कि
जानते सब हैं पर दुनिया को देते हैं भुलावा
न दें तो कैसे करेंगे शांति लाने का दावा…
और यह भी कि
जहाँ तख्तियाँ लगी होती सर्वशक्तिमान के नाम की
पीछे अधर्म के होते अहाते
दोनों रचनाएं बहुत बढिया हैं।
जानते सब हैं पर दुनिया को देते हैं भुलावा
न दें तो कैसे करेंगे शांति लाने का दावा…
यहाँ शराब पीना मना है, अधिकांशतः कहीं न कहीं लिखा दिख ही जाता है । यह मान लीज़िये कि यहाँ पीछे केबिन में बैठ कर पीने की उत्तम व्यव्स्था है ।
दीपक जी, कुछ रास्ते भी तो होंगे, जो हमसब को मिलबैठ कर बहस के ज़रिये निकालने पड़ेंगे ।
गौर करियेगा ।
सादर अभिवादन ।