चिंता का रोग


टूटते-बिखरते समाज को
बचाने के लिए जूझते लोग
रिवाजों और रीतियों को निभाकर
अपने लिए सम्मान ढूंढते लोग
चिंताओं में पाल रहे हैं रोग
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चिंता देती है कई रोगों को जन्म
पर उनसे क्या कहेंगे
जिनको चिंता के साथ जीने की
आदत हो गयी
ज्ञान सब बघारते हैं सभी
‘करने वाला तो करतार है’
पर फिर आ जाता है ख्याल
तो कहते हैं कि
”चिंता तो करनी पड़ती है
वरना हमारे काम कैसे होंगे
हमारी जिन्दगी तो हराम हो गयी’

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टिप्पणियाँ

  • paramjitbali  On 02/01/2008 at 16:49

    यही सच है।

    टूटते-बिखरते समाज को
    बचाने के लिए जूझते लोग
    रिवाजों और रीतियों को निभाकर
    अपने लिए सम्मान ढूंढते लोग
    चिंताओं में पाल रहे हैं रोग

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