पुराना अभी गया नहीं
और अभी दूर हैं नया साल
सजने लगे हैं लोगों के लिए
पहले से ही काकटेल के थाल
इतनी भी क्या जल्दी है
समझ में नहीं आती
शौकीन लोगों का
समय मुश्किल से निकल रहा है
पुराना भी क्या बुरा, जो चल रहा है
कैलेंडर की बदलती तारीखें
देखने से कोई तसल्ली नहीं होती
अगर दिमाग है अपने से बेहाल
आ रहा है और जा रहा है साल
बरसों से सुनते और देखते रहे
कैलेंडर बदले और बदली तारीखें
पर हालत वही रहे
झूठे आनंद में लोग बहते रहे
नैतिक चरित्र होता गया बदहाल
जब तक दिल में नहीं खुशी
कहीं से नहीं आ सकती
सुख का कोई कुआं नहीं हैं
जहाँ से बाल्टी भरी जा सकती
अगर तेज रोशनी में
शराब पीकर नाचते हुए
असली खुशी मिल जाती
तो दुनिया में भारत की संस्कृति की
तारीफ नहीं हो पाती
इतने गुजर गए साल
अब भी लोग हैं, इस पर निहाल
टिप्पणियाँ
naya saal mubarak ho.