पेट भरते ही भले लोग
चूल्हे की बुझा देते आग
पर जिनके मन में है
दौलत और शौहरत की आग
वह कभी नहीं बुझती
वह कभी शहर तो कभी ग्राम में
गली और मुहल्ले में भड़काते हैं आग
हर गरीब को खिलाते ख्याली पुलाव
ऐसे रास्ते का पता देते
जिसकी मंजिल कहीं नहीं
बस है इधर से उधर घुमाव
दिन में गाली देते अमीर को
रात को करते हैं जुडाव
चारों और से रंगे हैं
पर उजियाले में नहीं दिखता दाग
अनपढ़ को देते सपनों की किताब
कंगाल को समझाते अमीरी का हिसाब
अपनी ताकत के नशे में झूमते
किसी से नहीं मिलता मिजाज
बाद में बुझाने के लिए जूझते नजर आते
पहले लगाते आग
यह कभी यहाँ जलेगी
कभी वहाँ लगेगी
जब तक आम आदमी में नही जागेगी
चेतना और जागरूकता की आग
तब तक जलती रहेगी यह नफरत की आग