अपनी महफिलों में शराब की
बोतलें टेबलों पर सजाते हैं
बात करते हैं इंसानियत की
पर नशे में मदहोश होने की
तैयारी में जुट जाते हैं
हर जाम पर ज़माने के
बिगड़ जाने का रोना
चर्चा का विषय होता है
सोने का महंगा होना
नजर कहीं और दिमाग कहीं
ख्याल कहीं और जुबान कहीं
शराब का हर घूँट
गले के नीचे उतारे जाते हैं
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आदमी की संवेदना हैं कि
रुई की गठरी
किसी लेखक के लिखे
चंद शब्दों से ही पिचक जाती हैं
लगता हैं कभी-कभी
सच बोलना और लिखना
अब अपराध हो गया है
क्योंकि झूठ और दिखावे की सत्ता ही
अब लोगों में इज्जत पाती है
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टिप्पणियाँ
पंकज जी ने जो कमेन्ट दी न तो वह अंग्रेजी में समझ में आ रही है और हिन्दी में. मैंने इसे देव फॉण्ट में देखा पर उसमें भी यह कोई भी एक शब्द नहीं बता रही. मुझे खेद हैं इसलिए अगर पंकज जी की यह कमेन्ट हटा रहा हूँ और इसका मुझे खेद है. अगर उनके सामने कोई भाषा की समस्या है तो वह अंग्रेजी में स्पष्ट करें.
दीपक भारतदीप