रहीम के दोहे:प्रेम की गली संकरी होती है


रहिमन गली है सांकरी, दूजो न ठहराहिं
आपु अहैं तो हरि नहीं, हरि आपुन नाहि

संत शिरोमणि रहीम कहते हैं की प्रेम की गली बहुत पतली होती है उसमें दूसरा व्यक्ति नहीं ठहर सकता, यदि मन में अहंकार है तो भगवान् का निवास नहीं होगा और यदि दृदय में ईश्वर का वास है तो अहंकार का अस्तित्व नहीं होगा.
रहिमन घरिया रहंट को त्यों ओछे की डीठ
रीतिही सन्मुख होत है, भरी दिखावे पीठ

कविवर रहीम कहते हैं की कुएँ में लगी रहंट की छोटी-छोटी घडेईयाँ तुच्छ व्यक्ति की दृष्टि के समान होती हैं. सामने तो खाली होती किन्तु पीछे भरे हुई होतीं हैं.

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टिप्पणियाँ

  • मीनाक्षी  On 24/11/2007 at 04:44

    बहुत खूब ! नए नए दोहे पढने को मिलते हैं.
    व्याख्या कुछ और विस्तार से होती तो शायद पाठक पर अधिक प्रभाव पड़ता.

  • परमजीत बाली  On 24/11/2007 at 07:17

    बहुत सुन्दर दोहे प्रेषित किए हैं!धन्यवाद।

  • trilok  On 09/05/2009 at 19:52

    dohe

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