मुख से सिगरेट का धुँआ
चहुँ और फैलाते हुए करते हैं
शहर में फैले
पर्यावरण प्रदूषण की शिकायत
शराब के कई जाम पीने के बाद
करते हैं मर्यादा की वकालत
व्यसनों को पालना सहज है
उससे पीछा छुड़ाने में
होती है बहुत मुश्किल
पर नैतिकता की बात कहने में
शब्द खर्च करने हुए क्यों करो किफायत
कहैं दीपक बापू देते हैं
दूसरों को बड़ी आसानी से देते हैं
नैतिकता का उपदेश लोग
जबकि अपने ही आचरण में
होते हैं ढ़ेर सारे खोट
दूसरे को दें निष्काम भाव का संदेश
और दान- धर्म की सलाह
अपने लिए जोड़ रहे हैं नॉट
समाज और जमाने के बिगड़ जाने की
बात तो सभी करते हैं
आदमी को सुधारने की
कोई नहीं करता कवायद
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सुबह से शाम तक
छोड़ते हैं सिगरेट का धुआं
अपने दिल में खोदते मौत का कुआँ
और लोगों को सुनाते हैं
जमाने के खराब होने के किस्से
अपना सीना तानकर कहते हैं
बिगडा जो है प्रकृति का हिसाब
उस पर पढ़ते हैं किताब
पर कभी जानना नहीं चाहते
हवाओं को तबाह करने में
कितने हैं उनके हिस्से
टिप्पणियाँ
बहुत बढिया बात कही है रचना में।आप से पूरी तरह सहमत हूँ।बधाई
सुबह से शाम तक
छोड़ते हैं सिगरेट का धुआं
अपने दिल में खोदते मौत का कुआँ
और लोगों को सुनाते हैं
जमाने के खराब होने के किस्से
अपना सीना तानकर कहते हैं
बिगडा जो है प्रकृति का हिसाब
उस पर पढ़ते हैं किताब
पर कभी जानना नहीं चाहते
हवाओं को तबाह करने में
कितने हैं उनके हिस्से