शिक्षक पुत्र ने वकील पिता से कहा
‘पापा, मेरी शादी में आप दहेज की
मांग नहीं करना
यह बुरा माना जाता है
देश के समाज की हालत सुधारने का
श्रेय भी मिल जायेगा
हम पर कभी ‘दहेज एक्ट’ भी
नहीं लग पायेगा
उससे बचने का यही उपाय मुझे नजर आता है।’
वकील पिता ने कहा
‘बेटा, कैसी शिक्षा तुमने पायी
कानून की बात तुम्हारी समझ नहीं आयी।
‘दहेज एक्ट’ का दहेज से कोई संबंध नहीं
लेना और देना दोनों अपराध हैं
पर देने वाला बच जाता है
दहेज न लिया न लिया हो लड़के वालों ने
फिर भी लड़की का बाप इल्ज़ाम लगाता है।
वधु पक्ष तब कानून से नहीं शर्माता है।
अगर दहेज एक्ट का डर होता तो
समाज में रोज इसकी रकम न बढ़ जाती,
नई चीजें शादी के मंडप में नहीं सज पाती,
तुम सभी देखते रहो
कानून की विषय है पेचीदा
हर किसी की समझ में नहीं आता है।’
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नोट-यह कविता काल्पनिक है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना देना नहीं है। किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
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शहर को बढ़ते देखा
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सड़कों को सिकुड़ते देखा,
इंसानों की जिंदगी में
बढ़ते हुए दर्द के साथ
हमदर्दी को कम होते देखा।
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आसमान छूने की चाहत में
कई लोगों को जमीन पर
औंधे मुंह गिरते देखा,
बार बार खाया धोखा
फिर भी हर नये ठग की
चालों में उनको घिरते देखा।
……………………..
हिन्दी में पैदा हुए
अंग्रेजी के बने दीवाने
पढ़े लिखे लोगों की
जुबां को लड़खड़ाते देखा।
भाषा और संस्कार
इंसान की बुनियाद होती है
मगर अपने अंदर बनाने की बजाय
लोगों को बाजार से खरीदते देखा
………………………
ख्वाहिशें पूरी करने के लिये
आंखों से ताक रहे हैं,
बोलते ज्यादा, सुनते कम
लोग सोच से भाग रहे हैं
समझदार को भी
चिल्लाते हुए देखा।
सभ्य शब्द का उच्चारण
बन गया है कायरता का प्रमाण
बहादुरी दिखाने के लिये
लोगों को गाली लिखते देखा।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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टिप्पणियाँ
DAHEJ KE KHILAF BAHUT HI SANDAR HINDI KAVITA LIKHI HAI SI AAPNE…..
nice